मन रो घाट उडीकै सूनो, दोघड़ क्यूं रीती थारी!

गीतां रो गंगाजळ भर लै! तिरस मिटा लै रामारी!

रागां री कूंळी लहरां में,

सुरश्रुतियां कळनाद भरै!

सबद-सबद रट नांव थारलो,

पुरबजलम नै याद करै!

भाव-तणा हंसलां री पंगत,

लहरां पर चालै तिरती!

तट रा तरवर झाला देवै,

क्यूं ऊभी लाजां मरती!

आज्या! अे पणियारण आज्या! तू जाबक आळी भोळी!

भर लै निरमळ-नीर बावळी! सुधबुध क्यूं खोयां थारी?

थारै मन री दोघड़ मरवण!

घणा दिनां सूं रीती है!

मनै लखावै : थारी ऊमर,

तिरस्यां-मरतां बीती है!

नेड़ी आ, ऊभी के निरखै?

बेगी सी भर लै पाणी!

मन घाट चिणायो थारै

सारू, क्यूं तू अणजाणी?

नूतै नीर, इस्या दिन नित-नित, कद आवै जिनगानी में!

मौको मत चूकै अे मरवण! मान मतां की लाचारी!

चुळू अेक इण इमरत जळ री,

पीयां सूं अमरत्व मिलै!

मन रो बणखंड हरिया जावै,

फूल-फूलतो तत्व मिलै!

देख, आचमन करनै गौरी!

भौ-भौ रा संताप मिटा!

सूखा कंठ लियां क्यूं ऊभी!

पाप मिटा! सै ताप मिटा!

गीला-कंठ होंवतां सुण! बोल उपड़सी सुख-दुख रा!

पैली दो गुटका तो पी लै! पछै बता बीती थारी!

इण घाट रै खूंटै सूं आ,

बंधी प्यार री न्याव खड़!

डगमग-डगमग हालै पल-पल,

अेक हौड़ घड़ी-घड़ी!

बंधी न्यावड़ी खोल बावळी!

मांय बैठ तिर जावण दै!

मझधारा रा मजा मिजाजण!

जिनगाणी में आवण दै!

थकै नहीं, अर थमै नहीं प्यार तणी सोनल-नैया!

लहर-लहर पर चाल्यां जावै, जग रीतां सूं परबारी!

स्रोत
  • पोथी : मरवण तार बजा ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकांत ,
  • प्रकाशक : कल्पनालोक प्रकाशन (रतनगढ़)
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