दीवाली रा दिया जळै

च्यारूंमेर च्यानणो, नीचै कूंळै काळो चोर पळै

दीवाळी रा दिया जळै...

महला में मतवाळा बैठ्या मौज करै

भूखा मरै मजूर कठै सू पेट भरै?

रावण घणा जमी पर हरण करै लिछमी

राम निसरग्यो, मिनखपणो बेमौत मरै

सूना सासर फिरै करसणी दुख पावै—

भणै रामजी! सिर की आफत दूर टळै

दीवाळी रा दिया जळै...

गाजै-बाजै जीत रामजी घर आया

आगै होय माधिया भाई गुण गाया

बेचारी सीता सतवती मग डोलै

झांसा दे-दे कमतरिया ने बिलमाया

साची कहता हिवड़ै री हेली हालै

पड़दै ओलै चोर-लुटेरा दाळ दळै

दीवाळी रा दिया जळै...

सुसग्यो तेल दिया रो पण बाती सिलगै

मावस रात अंधेरी मन-मन में विलखै

तारा मुळक-मुळक पल में फीका पड़ग्या

पौ फाटी सुण आज अगूणो दिन चिलकै

घग्घू लुकग्या बारर्यां और तिबार्यां में

मिनखा सातर धरती काचर-बोर फळै

दीवाळी रा दिया जळै...!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : गजानन वर्मा ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : दूसरा संस्करण
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