खुद ही खुद सूं खूब लड़ै छै
उड़ती छांवळ्यां पकड़ै छै
दोन्यूं हाथां नै रगड़ै छै
चरचा ब्याव की चालै तो बोलै आगै आगै।
छोरी को चत न लागै।
कद तक देवै मन पै गूंठ्यां
बधती जावै मूंठ्यां मूंठ्यां
बैठी बांध गरीबी पग नै
कुंकुम बरणां सपना टूट्या
निजरां-निजरां में मन पोवै बिना सूई तागै।
मौसम खेलै सैल-सिकारां
दरपण देखै बहे दुसारां
पीळा पड़’र सूख न जावै
गिणगौर्यां का हर्या जुवारा
होगी पारा की सी बूंद उठाबा कुंण भागै।
ईंका सपना भारी होग्या
दोन्यूं नैण सिकारी होग्या
आवै मन चीत्या रघुवरजी
हाथां लोंग-सुपारी देज्या
सूती होवै तो जगावै, जागी कांई जागै!
दिन में दस-दस बार मरै छै
उल्टा-सीधा काम करै छै
बुरी को न बुरो मनावै
ईं नै भली बात अखरै छै
लड़गी जोड़ा की भाभी सूं सीधी सीख मांगै।