देखल्यो हजार बार भाई रो भाईपणो।

मन में विचार और, मूंढै पै मीठापणो।

पेट में खोटापणो

भाई रो भाईपणो॥

राखड़ी बंधाकै हाथ धरम धीज नेम दै।

भाई बण बैण नै दगो विचार बेच दै।

खास जाण आपणो ही रात घर रहण दै।

लूट-मार खोस-पीट कण्ठा छुरी फेर दै।

जीम्यो जीं थाळी में छेद सैण रो सैणापणो।

नीत में फरक पड़ग्यो फैलग्यो धोखापणो।

देखल्यो हजार बार

भाई रो भाईपणो॥

सुहाग रो सिंदूर मा-बैण रो लूटो मती।

अपग री रोटी री कोर हाथ सूं खोसो मती।

मिनख नै मिनख जाणो रगत नै चूसो मती।

बुद्ध री कचेड़िया में न्याय नै भूलो मती।

रावण लूटो मती थे सीता रो सीतापणो।

राम री धरा पे कियां आयग्यो ओछापणो।

देखल्यो हजार बार

भाई रो भाईपणो॥

बात में मीठास लावै कूड़ में कपट घोळ।

बाणी रा सुप्यार मीठा सबद काढै तोल-तोल।

गुड़जा पलक माय पींदै रा पत्तिल गोळ।

नींद में अचेत जाण पोल में बजावै ढोल।

गुरू नै बतावै हाथ चेला रो चेलापणो।

किया निगैला अब छैल रो छैलापणो।

देखल्यो हजार बार

भाई रो भाईपणो॥

साथ सड़ै जेळ में करदी बन्द बोलणी।

झूठ तो खुल्ले बाजारा चौड़े-धाडै डोलणी।

फैलग्यो भतीजवाद डूबगी पचा तणी।

पीठ देता पाण पड़ग्यो आंतरो भूलापणी।

धोळो-धोळो दूध जाणै है कितो भोळापणो।

दुख में पुकार देख कुण परायो-आपणो।

देखल्यो हजार बार

भाई रो भाईपणो॥

भूख नींद तिस मार तिल-तिल कट्टणो।

देस नै आजादी दीनी रगत सींच अप्पणो।

पेट रै पिलाणिया हू, खांडै नीचै खप्पणो।

बापू री उदारता अर आपा रो भलापणो।

नीचता री हद्द हूगी काईं धन बाँटणो।

गोळी री लपक्क मारी कोई भाई आपणो।

देखल्यो हजार बार

भाई रो भाईपणो।

देखल्यो हजार बार भाई रो भाईपणो।

मन में विचार और मूंढै पे मीठापणो।

पेट में खोटापणो

मूढै पे मीठापणो॥

स्रोत
  • पोथी : मुरधर म्हारो देस ,
  • सिरजक : कानदान ‘कल्पित’ ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन बीकानेर
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