कुमकुम सूँ पतड़ा पै लिखद्यूँ गोरी थारो नांव।

गोरी थारो नांव री, यो गोरी थारो गांव॥

हंसणी सी चाल चाले, नागण ज्यूँ बळ खावै।

आछ्या आछ्या छोरा छोरी, देख देख जळ जावै॥

गळी कूंचड़ा हेर्‌याँ—हेर्‌याँ, थारै जसी पावै।

कांई होग्यो यार नखेरण, बोल्याँ सूँ बतळावै॥

आजरवाल क्यूँ मँहगी पड़गी, म्हारै ऊपर छाँव।

कुमकुम...॥

पैल्याँ अतरो प्यार बधायो, अब होई मतवाळी।

म्हँनै थारो प्यार लागर्‌यो, कागद कोरो जाळी॥

पैल्याँ किसमत रेखा उजळी, अब बणगी छै काळी।

चानणी भी फीकी पड़ज्या, लागै घणी रूपाळी॥

मत घूमै तू अतरी ज्यादा, छाळा पड़ज्या पाँव।

कुमसुम...॥

पैल्याँ अतरो आवण—जावण, अब होगी अणजाण।

दुनियाँ रा ईं मेळा में तू, कर ले खूब पछाण॥

झरोखा सूँ झाँकबा में, क्यूँ आवै छै पाण।

छप्पर ऊपर नाळा—नाळा, होया करै ढकाण॥

मनख्याँ की ईं भीड़भाड़ में, मलै नही अब ठांव।

कुमकुम...॥

म्हूँ थाँकी चान्दणिया साजन, थैं म्हारा चकोर।

होड़ करे ना कोई थाँकी, थैं सबका सिरमोर॥

संजोग मलैगो फेरूँ तो, आवैगो दौर।

बरस पड़ैगी बादळ्यां, छावैगा घणघौर॥

मिनख्यां की नगराणी बधगी, लगै नहीं अब दांव।

कुमकुम....॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा (हाड़ौती विशेषांक) जनवरी–दिसम्बर ,
  • सिरजक : बद्रीलाल ‘दिव्य’ ,
  • संपादक : डी.आर. लील ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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