बण मोरिया रे धरती रो दुखड़ो अंबर सूं टेर दे!
अम्बर थारा आँसूड़ा नै धरती मायड़ झेलसी,
अपणा प्यासा पूताँ के खातर खेतां में रैलसी,
मोतीड़ा बण जासी थारी आँख्यां को उगाळ!
सोयां दुखड़ा को गीत उगेर दे...
तू प्यासो छो जद धरती नै सीझ-सीझ जळ दे द्यो छो,
थारी जीवण—जेवड़ी क’ भीग-भीग बळ दे द्यो छो,
पूस की रातां में बहग्यो ऊस को बेताळ!
यादां की बातां नै आज बखेर दे...
आधा पूत पालणै झूलै आधा ढुगळ्या चलता श्याम,
जोबण का भरमाया कुछ तो कुछ बूढ़ा बेकाम बनाम,
हळ की नोकाँ सूँ चीर्यो द्यो डीळ छाल छाल!
भूखा टाबर नै धान धनेर दे...