धन-धन गाड़ियो लुहार
तन पै नईं सूत को तार
सोग्यो धरती नै बिछार
चंदो सिराणै लगा’र
अम्बर की मुशेड़ ताणी
लोहा को करदै वै पाणी
खेताँ पड़गी बात पुराणी।
धन-धन वांकी रे जिनगाणी॥
बाळै खून आग पळचावै
गाळै रूप धूँकणी दावै
टाबर सूखी रोट्याँ खाबै
श्याळो पाळो खून जमावै
सूरज तपै डीलड़ो बाळ्यो
चौमासौ माया पै टाळ्यो
कुणनै वांकी घात पछाणी।
धन-धन वांकी रै जिनगाणी॥
लुहारण ऊँकी छै नखराळी
नैणा काजळ मुखड़ा लाली
बळै लिसाळी धूंकण चालै
आंसू पूरै घी कर घालै
गोदी में टाबरियो रौवै
दूध उतरज्या तो ऊ सोवै
तन पै तिणंग्याँ की सेलाणी।
धन-धन वांकी रै जिनगाणी॥
न तो रात पड़ी वै जाणै
अर न दन में ही सुख माणै
न वानै रोट्यां की याद
गिरायक सूं करतो फरियाद
दादा कांईं थें घड़वावो
म्हानै बेगा हुकम सुणाओ
थाँके कांईं चीज बणाणी।
धन-धन वांकी रै जिनगाणी॥
गाडी ही वांको घरबार
लेरां सारो ही परिवार
पण दुनियाँ की उल्टी रीत
धायाँ का सब गाबै गीत
कुत्तां कै आगै तो पटकै
पण ये टाबर आंसू गटकै
कुण की कुदरत कुणनै जाणी।
धन-धन वांकी रे जिनगाणी॥
रात दिनां लहो पै ल्हो ठोके
ॐ का हाथ कोई न रोकै
ऊ तो मन ही मन झुळसायों
कुण बैरी ने पेट बणायो
क्यूं कर ऊ विधना सूं कम छै
ऊ लोहा में दे जीवन छै
कुण नै पण, या बात पछाणी।
धन-धन वांकी रे जिनगाणी॥
बूढ़ी-धूंकणी धुणकावै
नखराळी घट्टी पै गावै
धाणी बूढ़ो बाबो फोड़
जाणै भाग लकीरां मौड़ै
बेटो हेला पाड़ै न्यारो
“धम्मे-धम्मे दौड़ो मारो”
जद लोहो बोलै छै बाणी।
धन-धन वाँकी रे जिनगाणी॥
ये तो धणी नाक का बाग्या
बारै मेवाड़ के आग्या
सोगन यानै मिलकर खाई
वाँका कुळ में फिरी दुहाई
जब ही म्हां घर-बार बसावाँ
जद चित्तौड़ जीत म्हाँ जावाँ
रैग्या बचना पै सैनाणी
याँ की होगी अमर कहाणी।
धन-धन वाँकी रे जिनगाणी॥