लगियौ धण नै पैलो जी मास, छायां सुहावै
ओ म्हारै सुसराजी रे हाथ री जी
आ तो हूंस भली छे घर नार, थारौ सुसरोजी पुरावै
ओ बड़भागण जगा थारी मनरळी
भावै धण नै फीणी रोटी दाळ, केरिया तो भावै
ओ जगा राणी नै छापर वाळै ताल रा।

कैर की भावन

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य में पर्यावरण चेतना ,
  • संपादक : डॉ. हनुमान गालवा ,
  • प्रकाशक : बुक्स ट्रेजर, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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