पूरब दिशा मे सूर्य देवजी समरतजी,

हां जी देवा सहस किरण ले उगसी।

मालिक तुम बिन और नहीं आसी,

बेगा पधारो गोरां का गणपतजी।

पच्छिम दिशा मे चांद देवा समरतजी।

हाँजी देवां नौलख तारा लासी।

वेगा पधारो॥

कैलाशपुरी में सदा शिवजी समरत।

हाँजी देवा ढूयाँ नाडया लारां लासी।

वेग पधारो राणी गोरां का गणपतजी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी लोकगीत ,
  • संपादक : पुरुषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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