अे तौ उतरड़ी रा मेउड़ा बरसै रै बाई गवरल अे

झड़ झूमकियौ लड़ लूमकियौ बाई गवरल अे

ईसर जी हळिया हांकै रै बाई गवरल अे

अे तौ गवरल बाई भातैया ढोवै रै बाई गवरल अे

झड़ झूमकियौ लड़ लूमकियौ बाई गवरल अे

अे तौ काकोसा हळिया हांकै रै बाई गवरल अे

अे तौ काकीसा भाता ढोवै बाई गवरल अे

झड़ झूमकियौ लड़ लूमकियौ बाई गवरल अे

अे तौ उतरड़ी रा मेहूड़ा बरसै रै म्हारा गवरल बाई

यह तो उत्तर दिशा से वर्षा हो रही है बाई गवरल अे

वर्षा की झड़ी श्रावण की 'लूमों' की तरह लगी हुई है बाई गवरल अे

ईसर जी हल हाँक रहे है बाई गवरल अे

यह तो गवरल बाई दोपहर का भोजन ले जा रही है बाई गवरल अे

वर्षा की झड़ी श्रावण की 'लूमों' की तरह लगी हुई है बाई गवरल अे

यह तो काकोसा हल हाँक रहे हैं बाई गवरल अे

यह तो काकीसा दोपहर का भोजन ले जा रही है बाई गवरल अे

वर्षा की झड़ी श्रावण की 'लूमों' की तरह लगी हुई है बाई गवरल अे

यह तो उत्तर दिशा से वर्षा हो रही है बाई गवरल अे

स्रोत
  • पोथी : गणगौर के लोक-गीत ,
  • संपादक : महीपाल सिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : सुधन प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : 1
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