आ तौ कुणसा के मांडी गणगौर
कुणसा के मांड्यौ रंग को झूमकड़ौ*
आ तौ ईसर जी के मांडी गणगौर
गौरां बाईसा के मांड्यौ झूमकड़ौ
लेद्यौ लेद्यौ बाईसा का बीर
लेद्यौ सा हजारी रंग कौ झूमकडौ
म्हानै पीसतां नै सोवै नौसर हार
पोवतां नै सोवै रंग कौ झूमकड़ौ
म्हारी सहेल्यां सरायौ नौसर हार
भौजायां सरायौ रंग कौ झूमकड़ौ
सुख सेजां में सोवै-नौसर हार
ढोलणी के पायै रंग कौ झूमकड़ौ
म्हारा बीरोसा के मांडी गणगौर
म्हारा जेठसा के मांड्यौ रंग कौ झूमकड़ौ

* झूमकड़ौ—विवाह के अवसर पर तोरण वंदना के पश्चात सास द्वारा जंवाई को 'झला-मली' की आरती की तरह ही झूमकड़ा दिखाया जाता था। जो अब लुप्त सा हो गया है।

यह तो किसके यहाँ सजायी गयी है गणगौर

किसके यहाँ सजाया गया है रंगीन 'झूमकड़ा'

यह तो ईसर जी के यहाँ सजायी गयी है गणगौर

गौरां बाईसा के यहाँ सजाया गया है 'झूमकड़ा'

लेकर दो लेकर दो 'बाईसा' के 'बीरा'

ले दो गेंदे के रंग का 'झूमकड़ा'

मुझे अनाज पीसते समय शोभित होगा नवसर हार

रोटियाँ बनाते समय शोभित होगा रंगीन 'झूमकड़ा'

मेरी सहेलियों ने सराहा नवसर हार को

भौजाइयों ने सराहा रंगीन 'झूमकड़ा'

सुख सेज पर तो शोभा देगा नवसर हार

पलंग के पाये पर तो रंगीन 'झूमकड़ा'

मेरे भय्या के यहाँ सजायी गणगौर

मेरे जेठ जी के यहाँ सजाया रंग का 'झूमकड़ा'

स्रोत
  • पोथी : गणगौर के लोक-गीत ,
  • संपादक : महीपाल सिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : सुधन प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : 1
जुड़्योड़ा विसै