ईसर चाल्यौ ये म्हारी गाया को गुवाळ

आंतण आयौ ये म्हारी कबरी गाय गुमाय

म्है तौ रेगी ये म्हारी बाबोसा की कांण

नीं तौ दे ती म्हैं तौ घैम घैसळां की च्यार

ईसर चाल्यौ ये म्हारी सांड्यां को गुवाळ

आंतण आयौ ये म्हारी भूरी सांड गुमाय

म्है तौ रैगी ये म्हारी काकौसा की कांण

नीतर देती ये घैम घैसळा की च्यार

ईसर चाल्यौ ये म्हारी लरड़ियां को गुवाळ

आंतण आयौ ये म्हारी घटौरी गुमाय

म्है तौ रैगी ये म्हारै बीरौसा की कांण

नीतर देती घैम घैसळां की च्यार

ईसर राबड़ी सबौड़...

ईसर चला है मेरी गायों का ग्वाल

सांम को आया मेरी कबरी गाय खोकर

मैं तौ रह गयी मेरे बड़े पिता के लिहाज से

नहीं तो देती मैं उसके लठ की चार

ईसर चला है मेरी ऊँटनियों का ग्वाल

सांम को आया मेरी भूरी ऊँटनी खोकर

मैं तो रह गयी मेरे 'काकोसा' के लिहाज से

नहीं तो देती मैं उसके लठ की चार

ईसर चला है मेरी भेड़ों का ग्वाल

सांम को आया मेरी मोटी ताजी भेड़ खोकर

मैं तो रह गयी मेरे भय्या के लिहाज से

नहीं तो देती उसके लठ की चार

ईसर अब 'राबड़ी' खाओ

स्रोत
  • पोथी : गणगौर के लोक-गीत ,
  • संपादक : महीपाल सिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : सुधन प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : 1
जुड़्योड़ा विसै