टोबै ढळती बेलड़ी जी

मालण फुलड़ा सा ल्यायी ईसर जी थांरी कोटड्यां जी

मालण फुलड़ा सा ल्यायी विकरम सिंग थांरी आरती जी

आरती में दस दाख सुपारी लूंग डौडा साथ जी

डौडा का कोट चिणाय

झीलौ म्हारी चूंदड़ी जी

गायां जायी छै ठाण में जी

बहुवां जायी छै साळ

झीलौ म्हारी चूंदड़ी जी

गायां खाया खोपरा जी

बहुवां खायी छै सूंठ

झीलौ म्हारी चूंदड़ी जी

गायां के गळ जेवड़ा जी

बहुवां के गळ हार

झोलौ म्हारी चूंदड़ी जी

गौरल जायौ छै पूत कुण खेलासी जी

खेलासी सुमन नणद टाबर के पालणै जी

आंख मरोड़ै नाक मरोड़ै कड़ घूमर घालै

बाड़ी नै रूंदळ जी

बाड़ी में लाल किंवाड़

झीलौ म्हारी चूंदड़ी जी

आवेला बिरमाजी रा पूत

जौबन धारी मन रळी...

पौधे के साथ बढ़ती बेल

मालन पुष्प लेकर आयी ईसर जी आपके घर पर

मालन पुष्प लेकर आयी विक्रम सिंह आपकी आरती

आरती में दस दाख सुपारी लूंग और डोडे साथ हैं

डोडो की दीवार चुनवाकर

मेरी सौभाग्यशाली चुनरी की चमक अनूठी है

गायों ने अपनी 'ठाण' पर बछड़ो को जन्म दिया

बहुओं ने 'साळ' में पुत्रों को जन्म दिया

मेरी सौभाग्यशाली चुनरी की चमक अनूठी है

गायों ने खाये खोपरे

बहुओं ने खायी सूंठ

मेरी सौभाग्यशाली चुनरी की चमक अनूठी है

गायों के गले में रस्सी

बहुओं के गले में हार

मेरी सौभाग्यशाली चुनरी की चमक अनूठी है

गौर ने जन्म दिया पुत्र को कौन खेलायेगा उसे

खेलायेंगी सुमन ननद शिशु के पालने पर

आँखों को मटकाये नाक भौंह सिकोड़े, कमर में बल डाले

बगिया में धूम मचा दी

बगिया में लाल दरवाजा

मेरी सौभाग्यशाली चुनरी की चमक अनूठी है

आयेंगे ब्रह्माजी के सुपुत्र

यौवन धारी उनके मन में बस गयी

स्रोत
  • पोथी : गणगौर के लोक-गीत ,
  • संपादक : महीपाल सिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : सुधन प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : 1
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