बाड़ी-बाड़ी बड़कूल्यौ* म्हारा भंवरया रै
बाड़ी में बसेलौ कुण
बसै-बसै ईसर जी का पातळा
सुण गौरल ये ल्याऔ झौळी भर फूल्यां की लै
आधा राळौ अळ्यां-गळ्यां म्हारा भंवरया रै
आधा गौरां बाई के सेज
सेज बिछाय सुता सायब जी
म्हानै के 'वै अगड़ घड़ाय
अगड़ घड़ावूं म्हारी बेनां के
सुण गौरल ये थांनै नौसर हार
अतरौ के 'ता रूस गई
सुण गौरल ये दौड़ी पीवर जाय
कानुड़ौ मनाबा नीसरयौ
सुण गौरल ये भावज पाछी आय
थारी मनायी नीं आवूं
म्हारा देवर रै बडोड़ा बीरोसा नै भेज
बडोड़ा बीरोसा नीसरया
सुण गौरल ये खांधै धरी रै बंदूक
काची तोड़ी कामड़ी
गौरल ये सड़-सड़ सुलड्या मो ‘र
कदै न रूसूं रूसणां
सुणौ सायब जी कदै न जावं म्हारै पी ‘र
भल-भल रूसौ रूसणा
सुण गौरल ये भल-भल जावौ थारै पी ‘र
*बड़कूल्यौ—होली का डांड रोपते ही गाँवों में नन्हीं-नन्हीं बालिकाएँ गोबर के छोटे-छोटे गोलाकार, अर्द्धचंद्राकार बड़कूलिये बनाती हैं और बाड़ पर सुखाती हैं इन्हें एक रस्सी में पिरोकर होलिका दहन के समय जला दिया जाता है।
बाड़-बाड़ पर बड़कूलिये टंगे हुए मेरे भँवरिया रे
बगीची में बसेगा कौन!
बसेंगे-बसेंगे ईसर जी की प्रिया
सुन गौरल ये लाओ झोली भर पुष्पों की ले
आधे बिछाओ इधर-उधर गलियों में मेरे भँवरिया रे
आधे गौरां बाई की सेज
सेज पर बिछाकर सो रहे सायब जी
मुझे कह रहे 'अगड़' घड़वा दूँगा
'अगड़' घड़वाऊँगा मेरी बहिनों के
सुन गौरल ये तुम्हारे नवसर हार
इतना कहते ही रूठ गई
सुन गौरल दौड़ी हुई पीहर जा रही
छोटा देवर मनाने निकला
सुन गौरल ये भावज वापिस आ
तुम्हारी मनायी नहीं आवूँगी
मेरे देवर रे तुम्हारे बड़े 'बीरोसा' को भेज
बड़े 'बीरोसा' निकले
सुन गौरल ये कंधे पर रखी रे बंदूक
कच्ची तोड़ी टहनी
गौरल ये सड़ा सड़ मार पड़ी पीठ पर
कभी नहीं रूठूँगी
सुनो सायब जी कभी नहीं जाऊँगी मेरे पीहर
अवश्य रूठो
सुन गौरल ये अवश्य जावो तुम्हारे पीहर