बोली रड़कै बावळा,

तीखोड़ी मत ताण।

करदे घट में कोचरा,

बाणी जिण गत बाण॥

***

बोली मीठी बोलतां,

सुधर ज्याय सब काज।

जण जण रै हिवड़ै बसै,

बाणी वीणा साज॥

***

अपणावै मन ओपरी,

मेटै मायड़ मूळ।

नाजोगां इण नेतियां,

धोबा भर-भर धूळ॥

स्रोत
  • सिरजक : कैलाशदान कविया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै