खग तौ अरियां खोसली, पिउ घर आया भाज।

जिण खूंटी खग टांकता, उण पर टांकौ लाज॥

रण में शत्रुओं को पीठ दिखा भागकर घर पर आये हुए अपने पति की निर्लज्जता पर व्यंग सुनाती हुई वीर नारी कहती है कि हे पतिदेव! आपकी तलवार तो शत्रुओं ने छीन ली और आप प्राण-रक्षार्थ भागकर घर पर चले आये। अब आप ऐसा कीजिये कि जिस खूंटी पर आप पहले तलवार लटकाते थे, उस पर अब अपनी लज्जा टाँग दीजिये। रण से भागकर आने में क्या आपको तनिक भी लज्जा नहीं आई है?

स्रोत
  • पोथी : महियारिया सतसई (वीर सतसई) ,
  • सिरजक : नाथूसिंह महियारिया ,
  • संपादक : मोहनसिंह ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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