सगतै राजा मांन सूं, उतर दीध अवल्ल।

एका चहिरौ चित्ररौ, एकां सांच सहल्ल॥

शक्तिसिंह ने राजा मानसिंह को उचित उत्तर देते हुए कहा कि एक ओर तो आप चित्रित पात्रों की हंसी उड़ा रहे हैं, जो कृत्रिम है किन्तु दूसरी ओर जो सहज अर्थात् प्रत्यक्ष सत्य है उसकी उपेक्षा कर रहें हैं।

स्रोत
  • पोथी : सगत रासो (सगत रासो) ,
  • सिरजक : गिरधर आसिया ,
  • संपादक : हुक्मसिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : प्रताप शोध प्रतिष्ठान, उदयपुर
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