तेज घमकतो तावड़ो चमकै जाणै साण।

ले ले रगड़क आंवतां लूआं लेवै प्राण॥

भावार्थ:- तेज किलकिलाती धूप शान की तरह चमक रही है और उससे रगड़ लेती हुई ‘लूअें’ इतनी तेज हो चली हैं कि वे प्राणों तक को लेने को तैयार है।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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