मिनखा देही पाय कर, जाण्यो नह जगदीस।

दीन कहै सुधरी नहीं, बिगड़ी विसवाबीस॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी साहित्य संग्रह संस्थान दासोड़ी रै संग्रह सूं ,
  • सिरजक : सांईदीन दरवेश
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