डूंगी खींवै बीजळी, कामण झाला देय।

करसो, कामी एकसा, हियो हिलोरा लये॥

पिया बसै परदेसड़ै, गेह उणमणी नार।

कद आवैला सायबा, सावण बीत्या च्यार॥

सावण बरसै बारनै, गीलो आंचल होय।

परनाळो इक बारणै, इक भिजोवै मोय॥

सावण सूनो हे सखी, पिया बसै परदेस।

जियो लागै पीव बिन, सूनो सगळो देस॥

हेताळू आया हे सखी, इक हेताळू शेष।

सै आयां भीना भरै, खाली कूंट विशेष॥

फागण सागण हे सखी, सागण संग विशेष।

सागण आंगण ना रह्यां, लागण रंग विशेष॥

सावण भावण हे सखी, जद कद संग भरतार।

बरसै झिलमिल बादळी, कद करसी करतार॥

सावण सूखो हे सखी, ना ही संग भरतार।

मेळ मिल्यां मन री मिलै, कद करसी करतार॥

हींडो देवै सायबा, हीडूं मन मद मोय।

तीज सुरंगी सायबा, किण बिध लागै मोय॥

रिम झिम बरसै बादळी, झपझप बीजिळयांह।

सजन अंधेरी रात में, तन मन लागी दाह॥

झपझप चमकै बीजळी, रिमझिम बरसै मेह।

सजन सखी परदेशड़ै, मेवां सूखी देह॥

साजन साजन सांझ जपूं, दिन उगली करतार।

ईश मिल्यां अरदास करूं, मिला देव भरतार॥

धरती सरसै, तरणि हरखै, सावण बरस्यां जोर।

साजन संग परणी हरखै, मौज कछु नहीं और॥

झूलो घाल्यो रूंख पर, सायब झोटा देय।

कठै सुरग को रेवणौ, इण विध मौजां लये॥

धरती सूखी पापड़ी, ज्यों सूखी मो देह।

कंत कळायण आवज्यो, सावण तरसै मेह॥

आभै उतरी बीजळी, घण राजी करतार।

अबकै सावण बरससी, धण सागै भरतार॥

भली कळायण ऊमटी, कंत पधार्‌या गहे।

बाहर बरसै बादळी, भीतर भीजै देह॥

फागण आयौ हे सखी, दोन्यूं जोड़ूं हाथ।

अबकै आवै पीवजी, खेलां गेरां साथ॥

चैत माह अपणेस को, ज्यों डाळी नवपात।

मधरी मधरी वाय चलै, करै गात पर घात॥

कुणसा दिन मीठा लगै, कुणसा लागै खारा।

संगी संग मीठा लगै, बिछड़्यां कड़वा खारा॥

बादळ आया हे सखी, बालम नहीं आया।

कीकर रहस्यूं अेकली, कळपै मन काया॥

कुरजां बोली रात में, लियो काळजो काढ़।

के पिया परदेस बसैं, गयो सगं तौ छोड़॥

स्रोत
  • पोथी : खरी खोटी ,
  • सिरजक : गुमानसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : उदय प्रकाशन, धमोरा, झुंझुनूं
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