राति सखी इण ताल मइं, काइज कुरली पंखि।

उवै सरि हूँ घर आपणइ, बिहूँ मेळी अंखि॥

हे सखि! रात को इस सरोवर में किसी पक्षी ने कलरव किया (करुण नाद उत्पन्न किया)। वह अपने सरोवर में और मैं घर में-हम दोनों की ही आँख नही लगी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : डॉ. मोतीलाल मेनारिया
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