राति सखी इण ताल मइं, काइज कुरली पंखि।
उवै सरि हूँ घर आपणइ, बिहूँ न मेळी अंखि॥
हे सखि! रात को इस सरोवर में किसी पक्षी ने कलरव किया (करुण नाद उत्पन्न किया)। वह अपने सरोवर में और मैं घर में-हम दोनों की ही आँख नही लगी।