पंथी हाथ संदेसड़उ, धण बिळखंती देह।
पग सूं काढइ लीहटी, उर आँसुआँ भरेह॥
मारवणी विलाप करती हुई पथिक के हाथ सँदेशा देती है, पैर से(पृथ्वी पर) रेखा खींचती है और अपना हृदय आँसुओ से भर लेती है।