पीव कनागत भी गया, दौरा लागै काग।
यादां थारी आवती, हिवड़ै सिळगै आग॥
थांकी सौगन सायबा, याद करूं वै बात।
तारा गिणती काटती, विरहा सारी रात॥
दिन भर काग उडावतां, सुगन मनाऊं कंत।
चढूं डागळै देख री, आतां-जातां पंत॥
प्रेम फांस हिवड़ै लगी, तपै सुनहली देह।
देख बादळा मेह रा, तन मन चावै नेह॥
उडता पंछी आसमां, करती देक विचार।
पांख उगा भगवान तूं, उडूं समंदर पार॥
मन में भावै सायबा, धंधै लगै न जीव।
हिचकी आती जद रुकै, सोचूं आतम पीव॥
नवरातां में सब जणी, पूजै देवी देव।
रही अेकली सायबा, थां बिन कयां कलेव॥
होय देवरां आरती, मन में उठरी हूक।
अब तो आजा सायबा, नवरातां मत चूक॥
घर आंगण सूनो लगै, खाबा आवै नीम।
बिन थांकै काया बळै, आजा बलम हकीम॥
नवरातां नीं आय तो, जीवूं कोनी कंत।
तड़प तड़प कर मैं करूं, जीवण जोबन अंत॥
शरमा बाबूलाल इब, समझ विरह री पीर।
सारस ज्यूं करळाय री, आन बंधा मन धीर॥