हियड़ै भीतर पैस करि, ऊगौ सज्जण रूँख।
नित सूकइ नित पल्हवै, नित नित नवला दूख॥
मेरे हृदय में प्रविष्ट होकर साजन-रूपी वृक्ष उगा है । यह नित्य सूखता है और नित्य पल्लवित होता है जिससे नित्य नये-नये दुःख देखने पड़ते हैं।