संगत बिना तिरियो नहीं, ना सुधरयो जग मांय।

डूबे सोई सुखराम के, कुसंगत पे जाय॥

स्रोत
  • पोथी : संत सुखरामदास ,
  • सिरजक : संत सुखरामदास ,
  • संपादक : डॉ. वीणा जाजड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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