इस्क उसी की झलक है, ज्यौं सूरज की धूप।
जहां इस्क तहां आप है, कादर नादर रूप॥
कहूं किया नहिं इस्क का, इस्तैंमाल संवार।
सो साहिब सौं इस्क वह, करि क्या सकै गंवार॥
सरमिंदा हो इस्क सौं, सो देवै सब खोय।
निंदा सहदाने बजैं, सोई चुनिंदा होय॥
दुनियांदार फकीर क्या, है सब जितनी जात।
बिगर इस्क मस्ती अरे, सब की खस्ती बात॥
सादे जे, प्यादे सबै, जद्यपि धन अनपार।
इस्क अमल मस्ती लियैं, सो हस्ती असवार॥
सब मजहब सब इल्म अरु, सबैं ऐस के स्वाद।
अरे इस्क के असर बिन, ए सब ही बरबाद॥
आया इस्क लपेट मैं, लागी चस्म चपेट।
सोई आया खलक मै, और भरइया पेट॥
जर बाजी बिन खलक के, कांम न संवरै कोइ।
एक इस्क बाजी अरे, ज्यां बाजी सैं होइ॥
सीस काटि करि भू धरै, ऊपर रक्खैं पाव।
इस्क चमन के बीच मैं, ऐसा है तो आव॥
जिंन पावौं सौं खलक मैं चलै, सु धरि मति पाव।
सिर के पांवो सो चला, इस्क चमन मैं आव॥
कोइ न पहुंचा उहां तक, आशिक नाम अनेक।
इस्क चमन के बीच मैं, आया मजनूं एक॥
इस्क चमन महबूब का, जहां न जावै कोइ।
जावै सो जीवै नहीं, जिवैं सु बौरा होइ॥
अरे इस्क के चमन मैं, सम्हलि कै पग धरि आव।
बीच राह के बूड़ना, ऊबट मांहि बचाव॥
मारे फिर फिर मारिए, चस्म तीर सौं खूब।
किए अदालत जुलम की, जहां बैठा महबूब॥
आसिक पीर हमेस दिल, लगैं चस्म के तीर।
किया खुदा महबूब कौं, सदा सख्त बेपीर॥
आसिक सिर अपना धरे, धरि दै पैरूं लाय।
बेनिसाफ महबूब कैं, करैं दूरि अनखाय॥
खून करैं लड़ बावरे, महबूबौं के नैंन।
आसिक सिर की गैंद सौं, खेलैं तबही चैंन॥
सुरख चस्म महबूब नैं, खंजर किए संवार।
निकलै लोहू सौ रंगे, आसिक पंजर पार॥
इस्क खेत सौं नहिं टलै, आवै बे उसवास।
चस्म चोट सौं सिर उड़ैं, धड़ बोलै स्याबास॥
खलक किया खालिक अरे, हसनैं ही कौं खूब।
सहनैं को आसिक किया, मारन कौं महबूब॥
चस्मौं सौं जख्मी करैं, रस गस मौं बिच खेत।
लट तस्मौं सौं बांधि कै, दिल बस मौं करि लेत॥
पंडित पूजा पाक दिल, ए दिमाक मति ल्याय।
लगैं जरब अंखियन की, सबैं गरब उड़ि जाय॥
पाव सकै नहिं ठहरि कै, बुरी चस्म की पीर।
जो जानैं जिसकैं लगै, कहर जहर के तीर॥
तीर निगाहौं के लगैं, दरद मुकररा हाय।
जररा भी जरराह सौं, मिलैं न उर के घाय॥
ए तबीब उठि जाहु घर, अबस छुवैं क्या हाथ।
चढ़ी इस्क की कैफ यह, उतरैं सिर के साथ॥
कस्मौ तुम्हैं करीम की, सुनियौ सबैं जिहांन।
चस्मौ की लागी गिरह, छूटैं छूटैं ज्यान॥
क्या राजा, क्या पातसा, क्या, गरीब कंगाल।
लागैं तैं छूटैं नहीं, नैंननि बड़ो जंजाल॥
लगा तीर जमधर छिपै, छिपै छिपाई सैफ।
नहिं उतरैं, नाहिं छिपै, हैफ इस्क की कैफ॥
अरे पियारे क्या करौं, जाहिर ही है लागि।
क्यौं करि दिल बारूद मैं, छिपैं इस्क की आगि॥
आतस लपटैं राग की, पहुंचैं दिल विच जाय।
दबी इस्क बारूद की, भभकनि लागी लाय॥
उठैं आगि उर इस्क की, जलै ऐस आराम।
चलैं न कैफी, चस्म विच, घुटैं धुयैं कैं धांम॥
गिरे रहैं, भीजे रहैं, मुतलक भी सम्हलैं न।
हुस्न पियाला पीय कैं, हुए हैं मदवे नैन॥
गिरे तहां ही गिरि रहे, पल भी पल उघरैं न।
पूरे मदवे हुस्न के, मजनूं ही के नैंन॥
चली कहानी खलक मैं, इस्क कमाया खूब।
मजनूं से आसिक नहीं, लैली सी महबूब॥
मजनूं कौं कहैं सब असल, और नकल के भाय।
कछु हो दिल मैं असल, तब सकैं नकल भी लाय॥
नकल सांच सौं सरस करि, करि लीनैं दिल दस्त।
हरीदास के हाल मैं, दर दिवाल भी मस्त॥
इस्क स्वांग सांचा किया, दिल कौं दिया छकाय।
हरीदास सचकौ गया, चेटक रूप दिखाय॥
इस्क हुस्न की बात क्यौं, सकैं सुखन मैं आय।
दिल चस्मौं के जुबां होय, तब कछु कहैं सुनाय॥
कही जाय कहा इस्क की, कहैं न मानै कोय।
जानैं सो जानें अरे, जिस सिर बीती होय॥
खलक न मानैं एक भी, अबस किए बकवाद।
खूब कमावै इस्क कौं, तब कछु पावैं स्वाद॥
मजा अजायब हुस्न का, चक्खैं चस्म जुबांन।
इस्क चमन रक्खैं सोई, आबादांन सुजांन॥
चस्मौं के चस्मा झरैं, झरना आब फिराक।
इस्क चिमन तब सब्ज रहैं, दिल जमीन हुय पाक॥
इस्क चिमन आबाद करि, इस्क चिमन कौं गाव।
‘नागर’ घर महबूब के, इस्क चिमन मैं आव॥
जिगर जख्म जारी जहां, नित लोहू की कीच।
‘नागर’ आसिक लुटि रहे, इस्क चिमन के बीच॥
चले तेग ‘नागर’ हरफ, इस्क तेज की धार।
और कटैं नहिं वार सौं, कटैं कटे रिझवर॥