हरी हरी कहि लेहु री, बिसरी दधि कौ नांव।

कृष्नमई ग्वारनि भई, कौतग लाग्यौ गांव॥

स्रोत
  • पोथी : नागरीदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : नागरीदास ,
  • संपादक : डॉ. किशोरीलाल गुप्त ,
  • प्रकाशक : नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी ,
  • संस्करण : प्रथम
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