तन मांहि तीरथ भला, तहां मन निरमल होइ।

पांचों इंद्री फेरि करि, झूलै बिरला कोइ॥

स्रोत
  • पोथी : श्री महाराज हरिदासजी की बाणी सटिप्पणी (निरपख मूल) ,
  • सिरजक : हरिदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा, दादू महाविद्यालय, जयपुर
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