पपईया मत पिव बोल, थूं पिक मतना कूक।
बोल चूभता बाण ज्यूं, मोर मतना टहूक॥

कागा पाँख मरोड़ दूं, थूं मत बोलै काँव।
थूं कहै पिया आवसी, दिन दूणौ उळगाव॥

ऊंची चढ़ मैड़ी सखी, नितकी जोवूं बाट।
नैह बिणजी आयौ नहं, हियै झड़गा कपाट॥

दड़बड़ दौड़ां दौड़ती-मन नहं लागै गेह।
नैणां काजळ थिर कठै-दाह लाग्यो देह॥

नैण सावण झड़ लगी, अन्न नाहं लागै अंग।
रैण रैण भर जागती, दीवलां थ्हांरै संग॥

ओ पुरवाई वायरौ, हिवड़ै उठै हिलोर।
म्हारै मनड़ै पिव बसै, पण पिव मनड़ै और॥

लोग कहै म्हूं बावळी, पण मन ठग्यौ प्रीत।
मन री गांठ न खोलतां, साथण मन रा मींत॥

उड उड जावै कैस अे, पवन न मानै अेक।
काजळियौ नैणां गळै, गालां मंडगी रेख॥

औळूं आवै बावळी, रत्ती न मानै कैण।
रह रह सुधियां आवती, हिवड़ै दूणी दैण॥

पिया बिना सूनो गेह, मनड़ौ रहे उदास।
तन तड़फै साथण अठै, पण मन पिव रै पास॥

नेह गळी आ सांकड़ी, मुड़ै नहं पाछा पग्ग।
दिन-दिन देह आ दुबळी, मुझ देख हंसतो जग्ग॥

सखी क्यूं नीं बीज पड़ै, ओ तन बणसी राख।
देह जळाय विरह देख, कुण भरसी रै साख॥

नैण सूझ्यां पंथ निहांर, आँसू भरसी साख।
अब तो आव निरमोही, नीं रूप बणैला राख॥



स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1995 ,
  • सिरजक : बस्तीमल सोलंकी ‘भीम’ ,
  • संपादक : शौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी री मासिक
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