बाबहियौ नइ विरहणी, दुहुवाँ एक सहाव।

जब ही बरसै घण घणउ, तब ही कहइ प्रियाव॥

पपीहा और विरहणी दोनों का एक स्वभाव है। जब मेघ बरसता है तब दोनों पी-आव पी-आव पुकारते हैं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : डॉ. मोतीलाल मेनारिया
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