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लगे लगे दृग आवहीं
नागरीदास
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लगे
लगे
दृग
आवहीं,
बैठे
पगे
किसोर।
नील
पीत
पट
पलट
गे,
जगे
रगमगे
भोर॥
स्रोत
पोथी
: नागरीदास ग्रंथावली
,
सिरजक
: नागरीदास
,
संपादक
: डॉ. किशोरीलाल गुप्त
,
प्रकाशक
: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी
,
संस्करण
: प्रथम
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