खुर भाटा खोरा हुया, घाट्यां धूम घेर।

ऊंचो डूंगर अलंघ हो, आवै आज उसेर॥

किण कारण आयो अठै, कांई जाण पिछाण।

पंथी भटक सराय में, भूल्यो सागी ठाण॥

बळती लूंआं बादळी, पाई जळ री पोट।

ऊसर मती उळीचजे, बरसे डैर अबोट॥

तूं मत बरसे बादळी, बादळ बरस्यां मेह।

कणको कदे जामियो, ऊसर भोमी एह॥

बरस भलां ही बादळी, कितरा बरस किरोड़।

कणको कदेन ऊगसी, असली ऊसर ठोड़॥

हंसा तूं दे छोड हठ, निभै थारी लाज।

इण सरवर परधानगी, कागलियां री आज॥

सुण हंसा कुळ रीत लख, कागां हेत जोड़।

एकलड़ो भल लागसी, ठहर इसड़ी ठोड़॥

हंसा अपणी डार न, छोड़ कठै मत जाय।

दुख आडी आवसी, दूजा दुख में जाय॥

कागां सीख लागजे, हंसा राखे टेक।

इण सर री मुरजाद नै, तूं ही जाणै एक॥

मानसरोवर मोज सू, करतो हंस किलोळ।

गिन्नाणी जद सूं गयो, करै कागला रोळ॥

स्रोत
  • पोथी : बाळसाद ,
  • सिरजक : चन्द्रसिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : चांद जळेरी प्रकासन, जयपुर
जुड़्योड़ा विसै