काहे कूं परदुख सहे, दूर पड़ेगा जाय।

मनिखा जनम अनूप है, मन सकै तौ हरि गुण गाय॥

स्रोत
  • पोथी : श्री महाराज हरिदासजी की बाणी सटिप्पणी (निरपख मूल) ,
  • सिरजक : हरिदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा, दादू महाविद्यालय, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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