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साइट: परिचय
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अंजस सोशल मीडिया
काहे कूं परदुख सहे
हरिदास निरंजनी
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काहे
कूं
परदुख
सहे,
दूर
पड़ेगा
जाय।
मनिखा
जनम
अनूप
है,
मन
सकै
तौ
हरि
गुण
गाय॥
स्रोत
पोथी
: श्री महाराज हरिदासजी की बाणी सटिप्पणी (निरपख मूल)
,
सिरजक
: हरिदास
,
संपादक
: मंगलदास स्वामी
,
प्रकाशक
: निखिल भारतीय निरंजनी महासभा, दादू महाविद्यालय, जयपुर
,
संस्करण
: प्रथम
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