कड़वो रह चावै कितो, रहतां गुणां अनेक।

स्याणा आदरसी सदा, गुणी नीम तूं एक॥

ओखद एक अमोलखी, सुखद छांह बेजोड़।

कड़वापण रै कारणै, स्याणा नीम छोड़॥

पंडत पोथी खोल मत, ठोठ बसै इण ठोड़।

बात सार जाणै नहीं, असल जिनावर जोड़॥

सीधी डोरी रीझ मत, जे सुख चावै बाण।

दूर फैंक मुंह तोड़सी, बांकी भोत कबाण॥

सीधो सीधो दीसतो, घर में अपणै बाण।

संगत करी कबाण री, लाग्यो लेवण प्राण॥

खोजी झूठा खोज अै, कोरा टप्पा खाय।

असली क्यूं ना ओळखै, मनचायो मिळ जाय॥

खोजी साचा खोज ले, हियै चानणो हाथ।

लोहिंदो हो जावसी, दीपक लेतां साथ॥

देख बटाऊ दिन गयो, बोळी दीसै बाट।

चटकै एडो जायले, पाछै मिळसी पाट॥

पो फाटी पगड़ो हुयो, पंथी नींद निवार।

गांठ उठा गैलो पकड़, जा घरबार बुहार॥

आखी रात घुळायदो, घग्घू घूंकारां।

जाणै कदेन ऊगसी, सूरज सक्कारां॥

स्रोत
  • पोथी : बाळसाद ,
  • सिरजक : चन्द्रसिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : चांद जळेरी प्रकासन, जयपुर
जुड़्योड़ा विसै