जीवण नै सह तरसिया, बंजड़ झंखड़ वाढ।
वरसे, भोळी वादळी, आयो आज असाढ़॥
भावार्थ:- बंजर झाड़-झंखाड़ और खेत सब जीवन के लिये तरस रहे हैं। बादळी, बरसो! आज आषाढ आ गया है।