जीवण नै सह तरसिया, बंजड़ झंखड़ वाढ।

वरसे, भोळी वादळी, आयो आज असाढ़॥

भावार्थ:- बंजर झाड़-झंखाड़ और खेत सब जीवन के लिये तरस रहे हैं। बादळी, बरसो! आज आषाढ गया है।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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