जल थल महियल ढूंढिया, प्रेम रतन के काज।
ऐ तीनूं तजै तो पाइये, लोभ डर अर लाज॥
प्रेम रूपी रत्न को पाने के लिए मैंने पृथ्वी के जलाशयों, समुद्र आदि स्थल व पर्वत आदि को भली प्रकार ढूंढा किंतु प्रेम कहीं नहीं मिला। प्रेम रूपी रत्न तब मिलता है जब लोभ डर व लज्जा को छोड़ दिया जाता है।।