हेत हियै रो चंदरमा, क्यूं देखै आकास।
झांक हियै में बावळा, कर तूं वठै तपास॥
हेत हियै रो कंवळ है, विगसै त्याग-तळाव।
कृपण कूप में कद मिलै, नाख भलै तूं लाव॥
उणियारै री आरसी, बोलै वाणी सूध।
पाणी नै पाणी कहै, कहै दूध नै दूध॥
चंदण चित रो हेत है, सौरम दै भरपूर।
सौ पड़दां में लुका दो, तो भी कदै न दूर॥
हेत रेत में नीपजै, यो निपजै कसमीर।
यो मीरां रै मन बसै, इणमें बसै कबीर॥
हेत हबोळा लेय जद, समदरियो सरमाय।
बूंद सरीखो बेपते, जाणै कद गुम जाय॥
हेत हरि रो नांव है, हेत जै’र री घूंट।
जिणरै होठां यो लग्यो, उणरो जस चौखूंट॥
यो करमा रो खीचड़ो, यो सबरी रो बेर।
यो नरसी रो मायरो, इणमें नदीं अंधेर॥
हेत बांस री बांसरी, अधरां अधर धरीह।
सांसां नातो जोड़ियो, विधना किसी घड़ीह॥
द्रुपदसुता रो चीर यो, अरजुण रो गांडीव।
यो गोप्यां रो किसन है, यो राधा रो पीव॥