जितरो तेज पुवंण अर पांणी, अतरो गंणौ भंणीजै।

जितरो तेज दहूं दळ मांहे, अतरो राघौ दीजै॥

स्रोत
  • पोथी : मेहोजी कृत रामायण ,
  • सिरजक : मेहा गोदारा ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी ,
  • प्रकाशक : सत् साहित्य प्रकाशन, कलकत्ता-700007 ,
  • संस्करण : प्रथम
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