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साइट: परिचय
संस्थापक: परिचय
अंजस सोशल मीडिया
सतगुरु वदन अधिक फल
रामदास जी
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सतगुरु
वदन
अधिक
फल,
जाका
अंत
न
पार।
रामदास
मै
का
कहूं,
कह
गए
सत
अपार॥
स्रोत
पोथी
: श्री रामदास जी की बाणी
,
सिरजक
: रामदास जी
,
संपादक
: रामप्रसाद दाधीच 'प्रसाद ' , हरिदास शास्त्री
,
प्रकाशक
: श्रीमदाद्य रामस्नेही साहित्य शोध - प्रतिष्ठान, प्रधान पीठ,खेड़ापा जोधपुर
,
संस्करण
: प्रथम
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गुरु
निर्गुण भक्ति काव्य