घड़लै सूं घड़लो घसै बेर्‌यां कूंडां भीड़।

बारो ठाली बाजतां छोड निसांसां छीड़॥

भावार्थ:- कूइयों और कुंडों पर इतनी भीड़ है कि घड़े से घड़ा रगड़ खाता है। इतने में चरस की खाली आवाज सुन कर लम्बे निश्वास छोड़कर भीड़ हट जाती है।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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