फांफां लाग्यां फाटिया भींतां लेव तमाम।

जाणै मन सूं मांडिया चीतारै चित्राम॥

भावार्थ:- दीवालों पर किया हुआ लेप जल-झोंकों से फट कर ऐसा लगता है मानो चित्रकार ने मन लगा कर चित्र बनाये हों।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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