नीला री खुरताळ पर, हूँ हेली! बळिहार।

रण मंडी सिर मैंगळां, चंद-तणौ आकार॥

वीरपत्नी नीलाश्व के शौर्य को लक्ष्य में रखकर कहती है। हे सखि! मैं तो नीलाश्व की खुरताल पर न्यौछावर होती हूँ। युद्ध में मदमस्त हाथियों के मस्तकों पर ये खुरतालें मानों चंद्रकार रूप में अक्ड़ित हुईं कैसी शोभा देती हैं।

स्रोत
  • पोथी : महियारिया सतसई (वीर सतसई) ,
  • सिरजक : नाथूसिंह महियारिया ,
  • संपादक : मोहनसिंह ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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