जे लूआं थे जाणती, म्हारै तन री पीड़।

बादळियां नै जनम दे, भली बंटाती भीड़॥

भावार्थ:- हे लूओं! यदि तुम्हें वेदना का थोड़ा सा भी ज्ञान होता तो तुम अवश्य ही बादलियों द्वारा जल बरसा कर हमारे इस कठिन समय में सहायक होतीं।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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