आज कळायण ऊमटी छोडै खूब हळूस।

सो-सो कोसां वरससी करसी काळ विधूंस॥

भावार्थ:- आज काली घटा उमड़ी है, हलके बादल खूब बिखर रहे हैं। यह सौ-सौ कोसों तक बरसेगी और अकाल का विध्वंस करेगी।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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