पान खड़क्क्यां जावता कोसां छाळोछाळ।

बै सागी सुध बायरा आया जोड़ां पाळ॥

भावार्थ:- पत्तों की मरमर से चमक कर कोसों तक चौकड़ी भरने वाले हरिण प्यास के मारे सुध-बुध खोकर तालाबों के तटों पर आये खड़े हैं।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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