कूआं सामां आवतां डरै अब रोळां।

खेळ्यां में टूट्या पड़ै काळा दिन धोळां॥

भावार्थ:- कूओं के पास आते ही अब काले हरिण लोगों के शोर से भयभीत नहीं होते। वे प्यास के मारे मध्याह्न ही में पानी के लिए ‘खेळों’ में टूटे पड़ते हैं।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
जुड़्योड़ा विसै