दमँगल बिण अपचौ दियण, वीर धणी रौ धान।

जीवण धण बाल्हा जिकां,छोड़ौ जहर समान॥

वीर स्वामी का अन्न युध्द के बिना नही पचा करता। अतः जिन्हें जीवन और स्त्री प्रिय है वे उस अन्न को जहर के समान समझकर छोड़ दें अर्थात् वीर स्वामी के अनुचर को जान हथेली पर रखनी पड़ती है।

स्रोत
  • पोथी : वीर सतसई (वीर सतसई) ,
  • सिरजक : सूर्यमल्ल मिश्रण ,
  • संपादक : डॉ. कन्हैयालाल , ईश्वरदान आशिया, पतराम गौड़ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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