कोमळ कोमळ पांखड़्यां, कोमळ कोमळ पान।

कोमळ कोमळ बेलड़्यां, राख्या लूआं ध्यान॥

भावार्थ:- फूलों की नरम-नरम पंखुड़ियां, नवांकुरित नरम-नरम पत्ते और नन्हीं -नन्हीं मृदु लताओं को बचाने का प्रयत्न तो करना, लूओं!

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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