टप-टप चूवै आसरा टप-टप विरही नैण।

झप-झप पळका वीज रा झप-झप हिवड़ो सैण॥

भावार्थ:- वासस्थान टपक-टपक कर चू रहे हैं और इसी प्रकार विरहनियों के नयन भी। बिजली का प्रकाश झप-झप कर रहा है और इसी प्रकार साजन का हृदय भी।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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